" सवेरा "

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आज दिन है सुबह का ,

रात तो हमारा है .

दिन तो है गुजरा , 

वो वक़्त हमारा है.

कैसे सँभालु इन पलो को जो बैठा , 

निकला वो परवाना है .

मैंने देखा रात में भी सूरज चमकता है .

अँधेरा होता है रात चमकता है .

दिन में भी तारे मैंने देखा 

और होता अँधेरा सवेरा में .

चमकाऊँ कैसे इन सितारों में मेरा नाम , 

सोंचू तो फिर एक सवेरा होता है.

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